इस लेख में बिहार बोर्ड कक्षा 9 इतिहास के पाठ 6 ‘वन्य समाज और उपनिवेशवाद (Vanya samaj aur upniveshvad Class 9th Notes)’ के नोट्स को पढ़ेंगे।
पाठ- 6 वन्य समाज और उपनिवेशवाद
1. वन्यसमाज की राजनैतिक स्थिती परप्रकाश डालें।
उत्तर- शुरू से ही वन्य समाज कबीलों मे बटा था । कबीले का प्रमुख मुखिया था जिसका मुख्य काम कबीले को सुरक्षा प्रदान करना था। धीरे-धीरे इन्होने कबीलो पर अपना अधिकार जमाना सुरु किया तथा अपने लिए विशेष अधिकार प्राप्तकर लिया।
2. वन्य समाज का सामाजिक जीवन कैसा था?
उत्तर-अधिवासी सीधे-सादे और सरल था ईमदार होते थे। उनका मुख्य काम था वे हिरण तीतर और अन्य छोटे पशु पक्षियों का शिकार करते थे। इसका समाजिक जीवन बहुतसदा होता था।
3. अठारहवीं शताब्दी में वन्य समाज का अर्थिकजीवन कैसा था
उत्तर-वन्यसमाज का आर्थिक जीवन का आधारकृषि थायेझुम खेती पारंगत थे। खेती करते-करते जब ये देखते थे की जीवन कम उपजाऊन हो गई तो दुसरे जगह चले जाते थे। कृषि के आलावा बाँस, मसाले विभिन्न रेशो रबर आदि का व्यापार करते थे।
4. अठारहवीं शताब्दी में ईसाई मिशनरियों ने वन्य समाज को कैसे प्रभावित किया?
उत्तर- इसाई मिशनरियों ने सेवा का नाटक रचा और शिक्षा स्वास्थ कार्यों के सहारे इन्होंने इसाईमें बैठ बना ली। वे गरीबों कोअन्न भी देते थे। धीरे-धीरे आदीवासीयों के नेता बन गए। उनहोने अन्य को भी ईसाई बनने के लिए प्रेरित किया। शिक्षा, साफ-सफाईतथा स्वास्थ्य सेवाओं द्वारा ईसाइयों ने कुछ अच्छे काम भी किए। लेकिन हर काम का उद्देश्य ईसाई धर्म का प्रचार करना था।
5. भारतीय वन अधिनियम का क्या उद्देश्य था?
उत्तर-भारतीय वन अधिनियम का उदेश्य था। पेडो की कटाई पर रोक लगना। जंगल को लकड़ी उत्पादकें लिए सुरक्षित करना।
6. चेरो विद्रोह से क्या समझते हैं?
उत्तर-चेरो जनजाति जो कि बिहार के पलामू जिले के रहने वाले थे, ने अपने राजा के खीलाफ विद्रोह किए थे, जिसे चिरो विद्रोह के नाम सेजाता हैयह विद्रोह सन् 1800 ई. में अंग्रेजों के शोषण के खिलाफ भुषण सिंह के नेतृत्व में किया गया था। इस विद्रोह के समय राजाकी मदद – के लिए अंग्रेज़ी सेना बुलाई गई थी। कर्नल के नेतृत्व में इस विद्रोह को दबा दिया गया।
Vanya samaj aur upniveshvad Class 9th Notes
7. तमार विद्रोह क्या था?
उत्तर-छोटा नागपुर के उरांव जनजाति ने जमीदारों केशोषण के खीलाफ़ सन् 1789में सुरू हुआ थाइसविद्रोह के तमार विद्रोह के नाम से जाना जाता है यह 1794ई. तक चलता रहा ऑर अग्रेजों की सहायता से इसे दबादीया गया।
8. चुहार विद्रोह के विषय में लिखे।
उत्तर-अग्रेंजों की लगान व्यवस्था के खिलाफ मिदनापुर स्थित करणगढ़ की रानी सिरोमणि के नेतृत्व मे चुआरों ने बिद्रोह किया। 1799 में यह विद्रोह चरम पर था। 6 अप्रैल 1799 को सिरोमणि कोगिरफ्तार कर लिया गया और आगे चलकर भुमि जाति के लोगों के साथ नारायण द्वारा किए गए विद्रोह में शामिल हो गए।
9. उड़ीसा के जनजाति के लिए चक्र विसोई ने क्या किए?
उत्तर-चक्रविसोई का जन्मघुमसार क्षेत्र के ताराबाड़ी नामक गाँव में हुआ था। वह अपने समय का बहादुर लड़का था। उड़ीसा के कंध जनजातियों के विद्रोह का की काफी महत्व है। आदिवासी बंगल से मद्रास तक फैले हुए थे। लेकिन मुख्य रूप से उड़ीसा मे ही थे। लोगो में नरबली प्रथा प्रचलीत थी। जिसे अंग्रेजी ने रोकने का प्रयास किया । चक्र विसाई ने इसक बिरोध किया
10. आदिवासीयों के क्षेत्रवादी आंदोलन का क्या परिणाम हुआ।
उत्तर-क्षेत्रवादी आंदोलन के फलस्वरूप आदिवासियों ने अलग राज्य की माँग करना शुरू कर दिया।भारत कार ने उनकी मांगी को ध्यान में रखते हुए मध्य प्रदेश राज्य का पुनर्गठन करके 1 नवम्बर 2000 ई. को आदिवासी बहुल क्षेत्र का एक पृथक राज्य छत्तीसगढ़ बनाया।
Vanya samaj aur upniveshvad Class 9th Notes
दीर्घ उत्तरीय प्रशन:
1. अठारहवीं शताब्दी में भारत में जनजातियों के जीवन पर प्रकाश डालें?
उत्तर-भारत का लगभग25भाग में वन है। इन वनो में निवास करनेवाले को आदिवासी कहाँ जाता है। इनकी अर्थव्यवस्था एवं संस्कृति वनों के साथ घुला -मिला है। भोजन, ईंधन, लकड़ी, घरेलू समग्री,जड़ी बूटी के साथ घुला – मिला मिला है। पशुओं के लिए चारा और कृषिगत औजारों के लिए ये बनो पर ही आश्रीत है। ये अनेक वृक्षो को पूजा करते है वनों को देवता समझते है। भोजन के लिए इन्हें फल और शिकार वनों से ही प्राप्त होता है। जल है।ये नदियो और झरनो से प्राप्त करते है। आवाश लिए पत्थर-मिट्टी, लकड़ी, बाँस फुस वहाँ बहुताय से उपलब्ध है। आदिवासी जनजाति के लोग अपने को वर्ग के आधार पर नही बल्की जतीय आधार पर अपने को संगठित कर रखा है। अठारहवी शताब्दी के पहले तक ये जनजातियाँ वन सम्पदा को उपयोग अपने जीविकोपार्जन के लिए करती थी।
2. तिलका मांझी कौन थे? उसने आदिवासी क्षेत्र के लिए क्या किया?
उत्तर-तिलक मांझी पहाड़िया जाति के आदिवासी थे। यह जाति मुद्धप्रिय थी। इनका निवास-स्थान राजमहल की पहाड़ियों में था। यहाँ अंग्रेजों ने मुखिया, साहुकार, ठेकेदारी वन तथा पुलीस विभाग के अधिकारियों को आदिवासियों का शोषण करने के लिए प्रेरित किया। परिणामस्वरूप इनका आर्थिक आधार तहस-नहस हो गया
तथा वे दरिद्र हो गए ऋण के बोध के कारण उन्हें अपनी उपजाऊ जमीन गैर आदिवासियों को बेचने के लिए बाध्य किया। अतःपहलीबार भारत में इस क्षेत्र में जनजाति बिद्रोह हुआ। उन्होने जमींदार के राजस्व नीती के खिलाफ विद्रोह किया जिसका नेता तिलका मांझी था। यह पहला संथाली था जिसने अंग्रेजों पर हिंसात्म करवाई की। सन् 1779 में उसने पहली बार भू-राजस्व – की, शिकम करने तथ अंग्रेजों से अपनी जमीन छुड़वाने के लिए विद्रोह किया। प्रथम कलकटर पर प्रधर कीया जिसके कारण उसकी मृत्यु हो जिसे तीलक मांझी को फांसी दे दिया गया
3. संथाल विद्रोह से आप क्या समझते है? सन् 1857 के विद्रोह में उनकी क्या भूमिका थी?
उत्तर-1857 में संथालों द्वारा किए गए विद्रोह को संथाल विद्रोह कहा जाता है। इस विद्रोह ने 1857 की क्रांति को भी प्रभावित किया था भागलपुर और राजमहल के बीच का क्षेत्र संथाल बहुल क्षेत्र था गैर आदिवासि एवं अंग्रेजी के अत्याचार से ऊबकर यहाँ के संथालो ने अपने ने को संगठित किया सिद्ध ने अपने चार भाईयों ने विद्रोह का नेतृत्व किया सिद्ध ने अपने को ठाकुर का अवतार घोषित किया 1855 को भगनडिह गाँव में संथालो को एक सभा बुलाई गई सभा में 400 गावों के 10,000 संथालों का विरोध किया जाए अंग्रेजी शासन को समाप्त का सतयुग का राज स्थापित किया जाऐ
न्याय और धर्म पर अपना राज कायम करने के लिए खुला विद्रोह किया जाए सिद्ध और कान्हू ने स्वतंत्रता की घोषणा कर दी संथाल राज स्थापित हो गया है। संथालों ने इस विद्रोह में अदम्य साहस का परिचय दिया, किन्तु बन्दुको के आगे पारमपरिक तीर-धनुष के साथ वे टिक नहीं सके विद्रोह असफल हो गया।
4. मुंडाविद्रोह का नेता कौन था? औपनिशिक शोषण के विरुद्ध उसने क्या किया?
उत्तर-मुंडा विद्रोह के नेता बिरस मुडा थे।औपनिवेशिक शासन के विरुध वह चिंतित थे। औपनिवेशिक शासन के भू-राजस्व प्रणाली न्यायप्रणाली एवं शोषण पूर्ण नीतियों का समर्थन करने वाले जमीदारों के प्रति आक्रोशित हुआ। उसने धर्मे से प्रभावित होकर अपने को सन् 1895 में ईश्वर का दूत घोषीत कीया गया। धार्मिकता को हथियार बनाकर मुंडा ने सभी आदिवासीयों को एकता के सूत्र में बंधना सुरू किया 1899 ई. को उसने ईसाई मिशनरियों पर आक्रमण किया। 1900 ई. को ब्रिटिश सरकार द्वारा विद्रोह को बुरी तरह कुचल दिया। विसरा मुंडा को गिरफ्तार कर लिया गया। उसे राँची जेल में भेज दिया गया है गया हो हैजा की बीमारी से उनकीमृत्यु हो गई । बिरसा मुंडा के विद्रोह को कुचल दिया गया ब्रिटिश सरकार समक्ष गई की आदिवासियों के असंतोष को दूर नही किया जायेगा तबतक वहआदिवासी क्षेत्र में शासन स्थापित नही कर पाएगा और उत्तरदायी शासन स्थापित हुआ। आदिवासियो लिए कई सुधार कार्य सरकार द्वारा किया गयाके
5. वे कौन से कारण थे।जिन्होंने अंग्रेजों को वन्य समाज में हस्तक्षेप की नीतिअपनाने के लिए बध्य
उत्तर- भारत में अपनी स्थिती का सुदृढ़ के लिएउपनिवादी नीति का पालन करते हुए अंग्रेंजो ने वन्य समाज में हस्तक्षेप करने कीनीतीका पालन करना पड़ा वन्यवाजी अपने जीवन में बाहरी हस्तेक्ष की नीती अपनानी पड़ी ।
अभ्यास के प्रश्न तथा उनके उत्तर
I. वस्तुनिष्ठ प्रश्न :
निर्देश : नीचे दिए गए प्रश्नों में चार संकेत चिह्न हैं, जिनमें एक सही या सबसे उपयुक्त है। प्रश्नों का उत्तर देने के लिए प्रश्न- संख्या के सामने वह संकेत चिह्न (क, ख, ग, घ) लिखें, जो सही अथवा सबसे उपयुक्त हो
1. भारतीय वन अधिनियम कब पारित हुआ ?
(क) 1864
(ख) 1865
(ग) 1885
(घ) 1874
2. तिलका मांझी का जन्म किस ई० में हुआ था ?
(क) 1750
(ख) 1774
(ग) 1785
(घ) 1850
3. तमार विद्रोह किस ई. में हुआ था ?
(क) 1784
(ख) 1788
(ग) 1789
(घ) 1799
4. ‘चेरो‘ जनजाति कहाँ की रहनेवाली थी ?
(क) राँची
(ख) पटना
(ग) भागलपुर
(घ) पलामू
5. किस जनजाति के शोषण विहिन शासन की स्थापना हेतु ‘साउथ वेस्ट फ्रंटियर एजेंसी‘ बनाया गया था ?
(क) चेरो
(ख) हो
(ग) कोल
(घ) मुण्डा
6. भूमिज विद्रोह कब हुआ था ?
(क) 1779
(ख) 1832
(ग) 1855
(घ) 1869
7. सन् 1855 के संथाल विद्रोह का नेता इसमें से कौन था ?
(क) शिबू सोरेन
(ख) सिद्धू
(ग) बिरसा मुंडा
(घ) मंगल पांडे
8. बिरसा मुंडा ने ईसाई मिशनरियों पर कब हमला किया ?
(क) 24 दिसम्बर, 1889
(ख) 25 दिसम्बर, 1899
(ग) 25 दिसम्बर, 1900
(घ) 8 जनवरी, 1900
9. भारतीय संविधान के किस धारा के अन्तर्गत आदिवासियों को कमजोर वर्ग का दर्जा दिया गया है ?
(क) धारा 342
(ख) धारा 352
(ग) धारा 356
10. झारखंड को राज्य का दर्जा कब मिला ?
(क) नवम्बर, 2000
(ख) 15 नवम्बर, 2000
(ग) 15 दिसम्बर, 2000
(घ) 15 नवम्बर, 2001
उत्तर— 1. (ख), 2. (क), 3. (ग), 4. (घ), 5. (ग), 6. (ख), 7. (ख), 8. (ख), 9. (क), 10. (ख) ।
II. रिक्त स्थानों की पूर्ति करें :
1. जनजातियों की सर्वाधिक आबादी ……………… में है।
2. अठारहवीं शताब्दी में वन्य समाज कई ……………. में बँटा था ।
3. वन्य समाज में शिक्षा देने के उद्देश्य से ………….. में घुसपैठ की ।
4. जर्मन वन विशेषज्ञ डायट्रिच बैडिस ने सन् 1864 ई. में ………….. की स्थापना की ।
5. ……………. पहला संथाली था, जिसने अंग्रेजों पर हथियार उठाया ।
6. ‘हो’ जाति के लोग छोटानागपुर के …………………. के निवासी थे ।
7. भागलपुर से राजमहल के बीच का क्षेत्र ……………….. कहलाता था ।
8. सन् …………. ई. में संथाल विद्रोह हुआ ।
9. बिरसा मुंडा का जन्म …………….. को हुआ था ।
10. छत्तीसगढ़ राज्य का गठन …………… को हुआ था ।
उत्तर—1. अफ्रीका, 2. कबीलों, 3. ईसाई मिशनरियों ने वन्य क्षेत्रों, 4. वन सेवा, 5. तिलका माँझी, 6. सिंहभूम, 7. दामने-ए-कोह, 8. 1855, 9. उलिहातु, 10. 1 नवम्बर, 2000 ई. ।
III. लघु उत्तरीय प्रश्न :
प्रश्न 1. वन्य समाज की राजनीतिक स्थिति पर प्रकाश डालें ।
उत्तर— शुरू से ही वन्य समाज कबीलों में बँटा था । हर कबीला का एक मुखिया होता था। मुखिया को युद्ध में कुशल और शक्तिशाली होना अनिवार्य था ताकी अपने लोगों को सुरक्षा प्रदान कर सके। धीरे-धीरे मुखियाओं ने उनके लिए अनेक. विशेषाधिकार प्राप्त कर लिए। इनकी अपनी शासन-प्रणाली थी तथा सत्ता का विकेन्द्रीकरण किया गया था। अंग्रेजों के आने के बाद उनके प्रलोभन में पड़कर अनेक मुखिया अंग्रेजों के हित में अपने ही समाज का शोषण करने लगे ।
प्रश्न 2. वन्य समाज का सामाजिक जीवन कैसा था ?
उत्तर—सामान्यतः आदिवासी सीधे-सादे और सरल तथा ईमानदार होते थे । अपने सामाजिक जीवन में कोई बाहरी हस्तक्षेप इन्हें स्वीकार नहीं था । क्रमशः आर्थिक लाभ के लिए इन्होंने कबीला के मुखिया को जमींदार मान लिया । ऐसा अंग्रेजों की हस्तक्षेप नीति के कारण हुआ । अब मुखियाओं के नेतृत्व में ही ईसाई मिशनरियों की घुसपैठ बढ़ गई। इनकी सामाजिक व्यवस्था अस्त-व्यस्त होने लगी । अंग्रेजों ने अपने लाभ के लिए, आदिवासियों के जो जंगलों से घनिष्ट रिश्ते थे, धीरे-धीरे तोड़ना शुरू कर दिया। अंग्रेजों ने मुखियाओं को अपनी ओर करके ऐसी स्थिति उत्पन्न कर दी कि अब छोटे-मोटे शिकार और जलावन के भी लाले पड़ने लगे । फलतः इन्हें शहरों में नौकरी ढूँढने जाना पड़ गया ।
प्रश्न 3. अठारहवीं शताब्दी में वन्य समाज का आर्थिक जीवन कैसा था ?
उत्तर—वन्य समाज का आर्थिक जीवन का आधार कृषि था । ये झूम खेती में पारगंत थे । झूम खेती को घुमंतू खेती भी कहा गया है। खेती करते-करते जब ये देखते थे कि जमीन कम उपजाऊ हो गई तो ये अन्य स्थान पर चले जाते थे और वहीं पर जंगल को जलाकर खेती शुरू कर देते थे । कृषि के अलावे बाँस, मसाले, विभिन्न रेशे, रबर, लाह आदि का व्यापार करते थे । रेशों में तसर प्रमुख था, जो आज भी है । जब अंग्रेजों को रेल की पटरियों के लिए स्लीपर, डिब्बों के लिए लकड़ी की आवश्यकता पड़ी तो उन्होंने निर्दयी की तरह पेड़ों को काटना आरम्भ कर दिया। हालाँकि बाद में प्रतिबंध लगा, लेकिन इस प्रतिबंध से आदिवासियों को ही नुकसान हुआ । झूम खेती पर रोक लगाई गई । शिकार पर भी प्रतिबंध लग गया ।
प्रश्न 4. अठारहवीं शताब्दी में ईसाई मिशनरियों ने वन्य समाज को कैसे प्रभावित किया ?
उत्तर— ऐसे तो आदिवासी किसी भी बाहरी हस्तक्षेप के विरोधी थे, लेकिन ईसाई मिशनरियों ने सेवा का नाटक रचा और शिक्षा तथा स्वास्थ्य कार्यों के सहारे इन्होंने ईसाइयों में पैठ बना ली। वे गरीबों को अन्न भी देते थे। धीरे-धीरे आदिवासियों के कई नेता ईसाई बन गए और उन्होंने अन्य को भी ईसाई बनने के लिए प्रेरित किया । शिक्षा, साफ- सफाई तथा स्वास्थ्य सेवाओं द्वारा ईसाइयों ने कुछ अच्छे काम भी किए। लेकिन हर काम के पीछे उनका उद्देश्य ईसाई धर्म का प्रचार था । आगे चलकर मिशनरियों का विरोध भी हुआ, लेकिन तबतक ये बहुत आगे बढ़ चुके थे ।
प्रश्न 5. भारतीय वन अधिनियम का क्या उद्देश्य था ?
उत्तर—‘भारतीय वन अधिनियम’ 1865 में पारित हुआ । इसका मुख्य उद्देश्य आदिवासियों को वनों के लाभ से वंचित करना था । अब आदिवासी वनों से लकड़ी नहीं प्राप्त कर सकते थे । इस अधिनियम से आदिवासियों का आर्थिक जीवन और सामाजिक जीवन दोनों प्रभावित हुए। वास्तव में अंग्रेजों का मुख्य उद्देश्य जंगल क्षेत्र पर अधिकार जमाना था । अपने लिए तो वे जंगलों के वृक्ष काटते ही थे । अब वे वहाँ से राजस्व वसूलना शुरू कर दिया। जमींदार राजस्व वसूलते थे और आदिवासियों का अन्य तरीकों से भी शोषण करते थे । महाजन और साहूकार भी इनके साथ कम मनमानी नहीं करते थे ।
प्रश्न 6. चेरो विद्रोह से आप क्या समझते हैं ?
उत्तर—चेरो कबीला के आदिवासी पलामू में रहते थे । अठारवहीं शताब्दी के लगभग अंत में वहाँ पर चूड़ामन राय का शासन था । वह अंग्रेजों से मिला हुआ था और खुलकर आदिवासियों का शोषण करता था । असह्य हो जाने पर चेरो लोगों ने सन् 1800 ई. में राजा के विरुद्ध खुला विद्रोह शुरू कर दिया। राजा इस विद्रोह से जब नहीं निबट सका तो उसने अंग्रेजों के आगे त्राहिमाम का संदेश भेजा। राजा की मदद करने कर्नल जोन्स की अगुआई में अंग्रेजों की सेना पहुँच गई और चेरो आन्दोलन को दबा दिया । चेरो कबीला का नेता भूषण सिंह था । उसे गिरफ्तार कर लिया गया और फाँसी पर लटका दिया गया ।
प्रश्न 7. ‘तमार विद्रोह‘ क्या था ?
उत्तर—‘उराँव’ जनजाति के आदिवासी छोटानागपुर के तमार क्षेत्र में फैले हुए ये लोग जमींदारों के शोषण से तंग आ गए थे । इसका परिणाम हुआ कि इन्होंने शासन के खिलाफ ही विद्रोह कर दिया । यह विद्रोह ‘तमार विद्रोह’ के नाम से इतिहास में प्रसिद्ध है । विद्रोह सन् 1789 में शुरू हुआ और सन् 1794 तक चलता रहा । इन्होंने जमींदार के नाक में दम कर दिया। परिणामतः अंग्रेजों ने निर्ममता का सहारा लिया और क्रूरतापूर्ण ढंग से इन्हें दबाने का प्रयास किया । विद्रोह दब तो गया, लेकिन पूरी तरह से समाप्त नहीं हुआ ! आगे चलकर उराँव आदिवासियों ने मुंडा और संथाल आदिवासियों से मिलकर विद्रोह किया और बहुत हद तक अंग्रेजों को झुका कर छोड़ा ।
प्रश्न 8. ‘चुआर विद्रोह‘ के विषय में लिखें ।
उत्तर— ‘चुआर’ जनजाति के आदिवासी तत्कालीन बंगाल प्राप्त के पश्चिमी भाग मिदनापुर, बांकुड़ा, मानभूम आदि क्षेत्रों में फैले हुए थे । अंग्रेजों द्वारा इन पर लादे गए लगान से ये क्षुब्ध थे । जमींदार इनके साथ मनमानी करते थे । अतः इन्होंने मिदनापुर क्षेत्र स्थित करणगढ़ की रानी सिरोमणी के नेतृत्व में विद्रोह का बिगुल फूँक दिया । यह विद्रोह एक लम्बे समय तक चलता रहा । ‘चुआर’ लोग तो भारी संख्या में मारे ही गए, अंग्रेजों को भी कम क्षति नहीं उठानी पड़ी। सन् 1778 तक संघर्ष चरमोत्कर्ष पर था । लेकिन 6 अप्रैल, 1799 को अंग्रेजों ने रानी सिरोमणी को धोखे से गिरफ्तार कर लिया और उन्हें कलकत्ता जेल में भेज दिया । फिर भी ‘चुआर’ शांत नहीं हुए। ये भूमिज जनजाति के साथ ‘गंगा नारायण’ के विद्रोह में शरीक हो गए ।
प्रश्न 9. उड़ीसा की जनजाति के लिए ‘चक्रबिसोई‘ ने क्या किए ?
उत्तर—चक्रबिसोई का जन्म घुमसार क्षेत्र के तारा बाड़ी नामक गाँव में हुआ था । वह अपने समय का एक बहादुर लड़ाका था । उड़ीसा के कंध जनजातियों के विद्रोह का भी काफी महत्व है। कंध आदिवासी पहाड़ी क्षेत्र में रहते थे और तत्कालीन बंगाल से लेकर मद्रास प्रांत तक फैले हुए थे। लेकिन इनका मुख्य जमावड़ा उड़ीसा में ही था । इन लोगों में नरबलि प्रथा प्रचलित थी । अंग्रेज इस प्रथा को रोकना चाहते थे । 1837 में अंग्रेजों ने जब इस कुप्रथा को रोकना चाहा तो इन्होंने विद्रोह कर दिया । चक्रबिसोई ने अंग्रेजों का विरोध किया । उसका मानना था कि अंग्रेज आदिवासियों के रीति-रिवाज में दखलंदाजी कर रहे हैं । बिसोई आजीवन अंग्रेजों से लोहा लेता रहा । कंध आदिवासियों ने 1857 की प्रथम क्रांति में भी खुलकर भाग लिया था ।
प्रश्न 10. आदिवासियों के क्षेत्रवादी आंदोलन का क्या परिणाम हुआ ?
उत्तर—आदिवासियों के आन्दोलनों को रोकने के लिए अंग्रेजों को 1935 में उठाया । तत्कालीन विधान सभा ने जनजातियों के लिए शिक्षा की व्यवस्था की तथा इन्हें कुछ आरक्षण दिया गया। स्वतंत्र भारत के संविधान में इन्हें कमजोर वर्ग मान लिया गया। सभी तरह की सुविधाओं में इनके लिए आरक्षण की व्यवस्था लागू हुई। 1952 में नई नीति बनी । औपनिवेशिक शासन के अन्त के बावजूद ये शांत नहीं हुए । क्षेत्रवादी आंदोलन जारी ही रहा। 1 नवम्बर, 2000 ई. को मध्य प्रदेश से आदिवासी बहुल क्षेत्र को छाँटकर पृथक छत्तीसगढ़ राज्य बनाया गया । इस प्रकार 15 नवम्बर, 2000 को ही बिहार से कर एक झारखंड राज्य बना ।
IV. दीर्घ उत्तरीय प्रश्न :
प्रश्न 1. अठारहवीं शताब्दी में भारतीय जनजातियों के जीवन पर प्रकाश डालिए ।
उत्तर—भारत का लगभग 25 प्रतिशत भाग में वन हैं । इन वनों में निवास करनेवालों को आदिवासी कहा जाता है। भारत में इनकी आबादी अफ्रीका से थोड़ा ही कम है । आदिवासियों के जीवन को वनों से अलग कर नहीं देखा जा सकता। दोनों में प्रायः अन्योन्याश्रय सम्बंध है । इनकी अर्थव्यवस्था एवं संस्कृति वनों के साथ घुला – मिला है। भोजन, ईंधन, लकड़ी, घरेलू सामग्री, जड़ी-बूटी जैसी औषधियाँ, पशुओं के लिए चारा और कृषिगत औजारों के लिए ये वनों पर ही आश्रित हैं । ये अनेक वृक्षों की पूजा करते हैं और वन को देवता समझते हैं। नए पौधों के निकलने के समय ये उस क्षेत्र में पैर भी नहीं रखते । भोजन के लिए इन्हें फल और शिकार वनों से ही प्राप्त होते हैं । जल ये नदियों और झरनों से प्राप्त करते हैं । आवास के लिए पत्थर-मिट्टी, लकड़ी, बाँस, फूस वहाँ बहुतायद से उपलब्ध हैं। आदिवासी जनजाति के लोग अपने को वर्ग के आधार पर नहीं, बल्कि जातीय आधार पर अपने को संगठित कर रखा है। पहाड़िया, चेरो, कोल, उराँव, हो, संस्थाल, चुआर, खरिया, भील, मुंडा आदि इनकी मुख्य जातियाँ हैं । अठारहवीं शताब्दी के पहले तक ये जनजातियाँ वन सम्पदा को उपयोग अपने जीविकोपार्जन के लिए करनी थीं। ये बहुत सीधा-सादा तथा ईमानदार होते थे । ये अपने जीवन में किसी बाहरी हस्तक्षेप को सहन नहीं करते थे। थोड़े में ही निर्वाह इनकी आदत, में सुमार था। लेकिन अंग्रेजों ने इनके जीवन को अस्त-व्यस्त कर दिया । शक्ति भर इन्होंने विरोध किया लेकिन बंदूक के आगे इन्हें झुकना पड़ा ।
प्रश्न 2. तिलका माँझी कौन थे? उन्होंने आदिवासी क्षेत्र के लिए क्या किया ?
उत्तर—तिलका माँझी एक संथाल नेता थे, इन्होंने न केवल अपने जमींदार का विरोध किया, बल्कि अंग्रेजों पर भी हिंसात्मक कार्रवाई की । तिलका माँझी का जन्म संथाल परगना क्षेत्र में सुल्तानपुर के निकट तिलकपुर गाँव में 1750 ई. में हुआ था ।
अंग्रेजों ने साहुकारों, ठेकेदारों, राजस्व, वन तथा पुलिस विभाग के अधिकारियों को आदिवासियों का शोषण करने के लिए उकसाया। इसका फल हुआ कि उपजाऊ भूमि गैर आदिवासियों को हस्तांतरित होने लगी। आदिवासी ऋण के बोझ तले दबते गए। इन आदिवासियों का आर्थिक आधार नष्ट भ्रष्ट हो गया और ये दरिद्रता का जीवन जीने को विवश हो गए ।
इन सब बातों के चलते अब जमींदारों और साहूकारों के विरुद्ध विद्रोह आवश्यक हो गया था। विद्रोह का बिगुल फूँक दिया गया। इसके नेता तिलका माँझी थे। यह देश का पहला संथाल विद्रोह था । इस विद्रोह ने जमींदारों का तो विरोध किया ही, इनकी सहायता में आए अंग्रेजों का भी सशस्त्र विद्रोह किया । तिलका माँझी ने तिलकपुर जंगल को अपना कार्य क्षेत्र बनाया । यहाँ से वे विरोधियों पर आक्रमण की योजना बनाते थे । भागलपुर के पहले कलक्टर अगस्टस क्लैवलैंड पर सशस्त्र प्रहार किया। वे नहीं चाहते थे कि वन्य समाज और पहाड़ी क्षेत्र के जनजातीय समाज में कोई बाहरी हस्तक्षेप हो, उनका आर्थिक शोषण किया जाय और उनकी सामाजिक तथा धार्मिक भावनाओं को ठेस पहुँचाया जाय। कलक्टर पर पहली बार सशस्त्र आक्रमण करनेवाले वे पहले संस्थाल नेता थे। क्लेवलेंड की मृत्यु हो गई ।
तिलका माँझी को गिरफ्तार कर लिया गया और सन् 1785 में भागलपुर के बीच चौराहे पर एक बरगद के पेड़ पर लटकाकर फाँसी दे दी गई । तिलका माँझी अपने क्षेत्र की आजादी के लिए शहीद हो गए। उन्हीं के नाम पर उस चौक का नाम तिलका माँझी चौक रखा गया और वहाँ पर उनकी एक मूर्ति स्थापित की गई है ।
प्रश्न 3. संथाल विद्रोह से आप क्या समझते हैं ? सन् 1857 ई. के विद्रोह में उसकी क्या भूमिका थी ?
उत्तर—1855 में संथालों द्वारा किए गए विद्रोह को संस्थाल विद्रोह कहा जाता है । इस विद्रोह ने 1857 की क्रांति को भी प्रभावित किया था ।
भागलपुर और राजमहल के बीच का क्षेत्र संथाल बहुल क्षेत्र था । गैर आदिवासी एवं अंग्रेजों के अत्याचार से ऊबकर यहाँ के संथालों ने अपने को संगठित किया । सिद्धू, कान्हू, चाँद और भैरव नामक चार भाईयों ने विद्रोह का नेतृत्व किया। सिद्धू ने अपने को ठाकुर (राजा) का अवतार घोषित किया । 30 जून, 1855 को भगनाडीह गाँव में संथालों की एक सभा बुलाई गई। सभा में 400 गाँवों के 10,000 संथालों ने भाग लिया। सभी अस्त्र-शस्त्र से लैस थे। सभा में ठाकुर (सिद्धू) का आदेश पढ़कर सुनाया गया । आदेश में लिखा था कि ” जमींदारी, महाजनी तथा सरकारी अत्याचारों का विरोध किया जाय । अंग्रेजी शासन को समाप्त कर सतयुग का राज स्थापित किया जाय । न्याय और धर्म पर अपना राज कायम करने के लिए खुला विद्रोह किया जाय । सिद्धू और कान्हू ने स्वतंत्रता की घोषण भी कर दी। इस घोषण में कहा गया कि “अब हमारे ऊपर कोई सरकार नहीं है, हाकिम नहीं है, संथाल राज स्थापित हो गया है।” इन आदिवासियों ने गाँवों में जुलूस भी निकाले ।
शीघ्र ही लगभग 60 हजार संथाल एकत्र हो गए । जुलाई, 1855 को विद्रोह शुरू हो गया । इस सशस्त्र विद्रोह का आरंभ दीसी नामक स्थान से वहाँ के अत्याचारी दारोगा महेश लाल की हत्या से किया गया। सरकारी दफ्तरों, महाजनों के घर तथा अंग्रेजों की बस्तियों पर आक्रमण किया गया। वास्तव में आदिवासी गैर-आदिवासी और उपनिवेशवादी सत्ता के शोषण के खिलाफ थे ।
आदिवासियों के ऐसे संगठित विद्रोह से अंग्रेज डर गए। उन्होंने कलकत्ता तथा पूर्णिया से सेना बुलाकर विद्रोह को कुचल दिया। कान्हू सहित 5000 से अधिक संथाल मारे गए। संथालों के गाँव-के-गाँव उजाड़ दिए गए। सिद्धू के साथ अन्य नेता भी गिरफ्तार कर लिए गए ।
यद्यपि संथालों ने इस विद्रोह में अदम्य साहस का परिचय दिया, किन्तु बन्दूकों के आगे पारम्परिक हथियार तीर-धनुष के साथ वे टिक नहीं सके । विद्रोह असफल हो गया । विद्रोह असफल तो हो गया, किन्तु पूर्णतः दबा नहीं। 1857 की क्रांति के समय संथालों ने विद्रोहियों का साथ दिया था ।
प्रश्न 4. मुंडा विद्रोह का नेता कौन था ? औपनिवेशिक शासन के विरुद्ध उसने क्या किया ?
उत्तर—‘मुंडा विद्रोह’ के नेता बिरसा मुंडा थे। इनका जन्म 15 नवम्बर, 1874 को पलामू जिले के तमाड़ के निकट उलिहातु गाँव में हुआ था। वे आदिवासियों की गरीबी से बहुत चिंतित रहा करते थे ।
औपनिवेशिक शासन में भू-राजस्व प्रणाली, न्याय प्रणाली और शोषण की नीतियों के समर्थक जमींदारों के प्रति इनके मन में भारी आक्रोश था। ये एक धार्मिक किस्म के व्यक्ति थे और ईश्वर में इनका अटूट विश्वास था । अंग्रेजों के विरोध में ये किसी भी हद तक जाने को तैयार थे। समाज में स्थापित करने के लिए इन्होंने अपने को ईश्वर का दूत घोषित किया । अपने आन्दोलन की सफलता के लिए इन्होंने आदिवासियों को हथियार से लैस रहने की प्रेरणा दी। उन्हें इन्होंने उनके अपने अधिकारों के प्रति सजग किया। अपनी मुंडा जातियों के अलावे इन्होंने अन्य आदिवासियों को भी संगठित करना शुरू कर दिया। ईसाई मिशनरियाँ लालच देकर सीधे सादे आदिवासियों का धर्म परिवर्तनः कराकर ईसाई बना रही थीं। उन्हें यह बुरा लगा। फलतः उन्होंने 25 दिसम्बर, 1899 से मिशनरियों पर आक्रमण करना आरम्भ कर दिया । उनका ख्याल था कि समाज – शोपक यहीं पर तैयार किए जाते हैं। स्कूल चलाना और दवा बाँटना तो एक बहाना है, ताकि समाज के अंदर तक घुसपैठ बनाया जा सके। लेकिन अंग्रेज शासकों को यह बर्दाश्त नहीं हुआ और वे बिरसा के आक्रमणों का जबाव देने लगे। 8 जनवरी, 1900 को अंग्रेजों ने विद्रोह को दबा दिया । बहुत लोग मारे गए और उससे अधिक बन्दी बना लिए गए । बिरसा मुंडा की गिरफ्तारी के लिए इनाम की घोषण की गई। अपने लागों के धोखा के कारण बिरसा 3 मार्च, 1900 को गिरफ्तार कर लिए गए। कहते हैं कि रांची जेल के अंदर हैजा रोग से इनकी मृत्यु हुई थी। कुछ लोगों का यह भी कहना है कि काईंया फिरंगियों ने इनके भोजन में जहर मिला दिया। इसमें ठेकेदार जमींदार आदि भी शामिल थे। बिरसा मुंडा का आंदोलन समाप्त हो गया ।
प्रश्न 5. वे कौन-से कारण थे, जिन्होंने अंग्रेजों को वन्य समाज में हस्तक्षेप को नीति अपनाने के लिए बाध्य किया ?
उत्तर—वे कारण निम्नलिखित थे, जिन्होंने अंग्रेजों को वन्य समाज में हस्तक्षेप की नीति अपनाने के लिए बाध्य किया :
अंग्रेजों को अपने शासन संचालन के लिए भवनों की आवश्यकता थी । उनकी छतों, दरवाजों, खिड़कियों, आलमारियों आदि के लिए उन्हें लकड़ी की आवश्यकता थी । यह वनों से ही प्राप्त हो सकते थे। मधु, गोंद, लाह, रेशम, औषधियों के लिए जड़ी-बूटियाँ वनों से ही प्राप्त हो सकते थे । इन्हीं लाभों के लिए अंग्रेजों को वन्य समाज में हस्तक्षेप की नीति अपनाने के लिए बाध्य होना पड़ा । अंग्रेजों ने इन कामों को पूरा करने के लिए ठेकेदार नियुक्त किए, जो प्रायः साहूकार भी हुआ करते थे । ठेकेदार साहूकार जहाँ सफल नहीं हो पाते या भगा दिए जाते थे तो ये फिरंगी सेना की सहायता लेते थे ।
यह वह समय था जब इंग्लैंड में औद्योगिक क्रांति सफल हो रही थी । अंग्रेजों को अपने उपनिवेशों से कच्चे माल तथा तैयार माल के लिए बाजार की आवश्यकता थी । इसके लिए देश के कोने-कोने में रेल पहुँचाना आवश्यक था, ताकि कच्चा माल को बन्दरगाह तक पहुँचाने तथा बन्दरगाहों से तैयार माल बाजारों में शीघ्रतापूर्वक भेजे जा सकें। रेल की पटरियों के स्लीपर उस समय लकड़ी के ही बनते थे । डब्बे बनाने में भी लकड़ी की आवश्यकता थी। रेलवे स्टेशन और उसके बाबुओं के निवास के लिए घर बनाना था। इन सब कार्यों के लिए काफी लकड़ी की आवश्यकता थी और यह वनों से प्राप्त हो सकती थी। लेकिन आदिवासी वनों के पेड़ नहीं काटने देना चाहते थे । पेड़ों को वे देवता मानते थे । ठेकेदारों को ये भगा दिया करते थे । फलतः आदिवासियों को दबाना आवश्यक हो गया था ।
ये ही कारण थे, जिन्होंने अंग्रेजों को वन्य समाज में हस्तक्षेप की नीति अपनाने के लिए बाध्य कर दिया ।
Vanya samaj aur upniveshvad Class 9th Notes
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