इस पोस्ट में हमलोग बिहार बोर्ड कक्षा 7 हिन्दी के कहानी पाठ पाँच ‘ Veer Kunwar Singh (वीर कुँवर सिंह )’ सारांश को पढ़ेंगे।
वीर कुँवर सिंह
पाठ का सारांश-प्रस्तुत पाठ ‘वीर कुंवर सिंह’ में कुँवर सिंह के व्यक्तित्व एवं वीरता का वर्णन है। इनकी शौर्य-गाथा युग-युग तक देशवासियों को राष्ट्र-प्रेम का संदेश देती रहेगी। उनकी वीरता के गीत- ‘बाबू कुँवर सिंह तेगवा बहादुर, बंगला पर उड़ेला अबीर …” गाते रहेंगे। यह गीत उनकी शौर्य गाथा का प्रतीक है। उनके उत्साह एवं साहस का परिचय तब मिलता है जब इन्होंने अंग्रेजों की गोली से घायल हाथ को ‘मातु गंग, तोहरा, तरंग पर, हमार बाँह अरपित बा।” कहते हुए काटकर गंगा की धारा में फेंक दिया। दूसरी घटना, जो उनके जीवन से संबंधित है कि इन्होने जगदीशपुर से आरा आने-जाने के लिए एक सरंग का निर्माण करवाया था जिसका उपयोग उन्होंने यद्ध के समय किया। यह सुरंग आज भी महाराजा कॉलेज, आरा में विद्यमान है।इस महान विभूति का जन्म सन् 1782 ई. में भोजपुर मण्डलान्तर्गत जगदीशपुर गाँव में हुआ था। इनके पिता क नाम साहबजादा सिंह तथा माता का नाम पंचरतन कुँवर था। उनके पिता जगदीशपुर रियासत के जमींदार थे। कुँवर सिंह की शिक्षा की व्यवस्था घर पर ही की गई थी। इन्होंने अपनी शिक्षा संस्कृत एवं फारसी में पाई, लेकिन इनकी विशेष रूचि घुड़सवारी, तलवारबाजी तथा कुश्ती लड़ने में थी। पिता की मृत्यु के पश्चात् 1827 इ. में जब इन्होंने अपनी रियासत की जिम्मेदारी संभाली, उस समय अंग्रेजों का अत्याचार | चरम पर था। वे इस अत्याचार के विरुद्ध आवाज उठाने वाले ही थे कि 1857 ई. की क्रांति का शंखनाद हो गया। 25 जुलाई, 1857 ई. को दानापुर छावनी के अंग्रेजी सैनिकों | ने विद्रोह कर दिया। फिर क्या था। कुँवर सिंह ने इन सैनिकों के साथ आरा जेल के कैदियों को आजाद कराया और 27 जुलाई, 1857 ई. को आरा पर विजय प्राप्त कर ली। इस समय आरा 1857 की क्रांति के विद्रोह का केन्द्र था और कुंवर सिंह इस क्रांति के प्रमुख नेता थे। Veer Kunwar Singh class 7 Saransh
इस विद्रोह की ज्वाला जब बिहार में सर्वत्र फैल चुकी, तब अंग्रेजों ने अपना दमनचक्र चलाया। अंग्रेजों तथा कुँवर सिंह के बीच भीषण युद्ध हुआ जिसमें कुँवर पराजित हो गए और इस हार का बदला लेने के लिए इन्होंने रीवा, काल्यो, कानपुर, लखनऊ आदि जगहों के राजाओं एवं जमींदारों से मुलाकात की। इनकी इस विजय-यात्रा से अंग्रेजी के होश उड़ गए। इस प्रकार ग्वालियर तथा जबलपुर के सैनिकों के सहयोग से आजमगढ पर अधिकार करने के बाद 23 अप्रैल, 1858 को जगदीशपुर में यूनियन जैक (अंग्रेज का झंडा) उतारकर अपना झंडा फहराया। इस समय इनकी उस 80 वर्ष की थी। Veer Kunwar Singh class 7 Saransh
निष्कर्षत: यह कहा जा सकता है कि कुंवर सिंह भारत माता के महान सपूत थे। इन्होंने अपना तन-मन-धन मातृभूमि की स्वतंत्रता के लिए अर्पित कर दिया था। ये महान वीर, रण-कुशल तथा ऐसे स्वाधीनता सेनानी थे, जिन्होंने स्वातंत्र्य-संग्राम के लिये सारे सुखों की तिलांजलि दे दी और सारे देशवासियों को देश को अजादी के लिए प्रेरित किया।
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