कोयले का वर्गीकरणः- कार्बन की मात्रा के आधार पर कोयला को चार वर्गों में रखा गया हैः
- ऐंथासाइटः- यह सर्वोच्य कोटि का कोयला है जिसमें कार्बन की मात्रा 90% से अधिक होती है। जलने पर यह धुँआ नही देता है।
- बिटुमिनसः- यह 70 से 90% कार्बन की मात्रा धारण किये हुए रहता है तथा इसे पारिष्कृत कर कोकिंग कोयला बनाया जा सकता है। भारत का अधिकतर कोयला इसी श्रेणी का है।
- लिग्नाईटः- यह निम्न कोटि का कोयला माना जाता है जिसमें कार्बन की मात्रा 30 से 70% होता है। यह कम ऊष्मा तथा अधिक धुआँ देता है।
- पीटः- इसमें कार्बन की मात्रा 30% से भी कम पाया जाता है। यह पूर्व के दलदली भागों में पाया जाता है।
गांडवाला समूह का कोयला क्षेत्रः-
झारखण्ड – कोयले के भण्डार एवं उत्पादन की दृष्टि से झारखण्ड का देश में पहला स्थान है। यहाँ देश का 30 प्रतिशत से भी अधिक कोयला का सुरक्षित भण्डार है। झरिया, बोकारो, गिरिडीह, कर्णपुरा, रामगढ़ इस राज्य के प्रमुख उत्पादक क्षेत्र हैं। पश्चिम बंगाल के रानीगंज कोयला क्षेत्र का कुछ भाग इसी राज्य में पड़ता है।
छत्तीसगढ़ः- सुरक्षित भण्डार की दृष्टि से इस राज्य का स्थान तीसरा किन्तु उत्पादन में यह भारत का दूसरा बड़ा राज्य है। यहाँ देश का 15 प्रतिशत सुरक्षित भण्डार है लेकिन उत्पादन 16 प्रतिशत होता है।
उड़िसाः- उड़िसा में एक चौथाई कोयले का भण्डार है पर उत्पादन मात्र 14.6 प्रतिशत ही होता है।
टर्शियरिय कोयला क्षेत्रः- टर्शियरी युग में बना कोयला नया एवं घटिया किस्म का होता है। यह कोयला मेघालय मे दारगिरी, चेरापूंजी, लेतरिंग्यू, माओलौंग और लांगरिन क्षेत्र से निकाला जाता है। ऊपरी असम में माकुम, जयपुर, नजिरा आदि कोयले के क्षेत्र हैं। अरूणाचल प्रदेश में नामचिक और नामरूक कोयला क्षेत्र है। जम्मू और कश्मिर में कालाकोट से कोयला निकाला जाता हैं।
लिग्नाइट कोयला क्षेत्र :
यह एक निम्न कोटि का कोयला होता है। इसमें नमी ज्यादा तथा कार्बन कम होता है। इसलिए यह अधिक धुँआ देता है। लिग्नाइट कोयले का भण्डार मुख्य रूप से तमिलनाडु के लिग्नाइट वेसिन में पाया जाता है। जहाँ देश का 94 प्रतिशत लिग्नाइट कोयले का सुरक्षित भंडार है।